सुनील त्रिपाठी
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
सच्चा सुख प्रकृति और संस्कृति से जुड़ने में है।
वृन्दावन:भारतभूमि के बृजमण्डल ने भारतीय संस्कृति, गौ सेवा और मूल्यों की अद्भुत व्याख्या की है। गाय को *”जगत् की माता”* मानने की परम्परा न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
वृन्दावन के बृजभूमि में *संविद् गुरुकुलम* द्वारा अपनाई गई यह परम्परा आधुनिक युग में एक अनुकरणीय उदाहरण है। यह विद्यार्थियों को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के गहरे मूल्यों से परिचित कराता है और उनके मन में करुणा, दया, सेवा भावना और प्रकृति के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।
स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के लिए गौ माता का योगदान अमूल्य है। इनके उत्पादों का उपयोग न केवल पोषण में बल्कि जैविक कृषि और औषधीय उपचार में भी किया जाता है। ऐसे समय में जब जन्मदिन जैसे व्यक्तिगत उत्सव दिखावे और भौतिकवाद से जुड़ गए हैं, संविद गुरुकुलम की यह पहल पश्चिमी संस्कृति को दरकिनार करते हुए हमारी संस्कृति के सच्चे मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करती है।
गौशाला में जाना और गाय को छूना, उसकी सेवा करना और उसका आशीर्वाद लेना न केवल बच्चों में आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है बल्कि उन्हें यह भी सिखाता है कि सच्चा सुख प्रकृति और संस्कृति से जुड़ने में है।
यह परंपरा भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है और उन्हें यह समझने में मदद कर सकती है कि भारतीय संस्कृति में हर परंपरा के पीछे एक गहरा अर्थ और समृद्ध दर्शन छिपा है।
“गावो विश्वस्य मातरः”और “तां धेनु शिरसा वंदे भूतभवस्य मातरम्”* जैसे श्लोक इस भावना को और मजबूत करते हैं, हमें सिखाते हैं कि गाय की सेवा केवल एक शारीरिक कार्य नहीं है बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संतुलन स्थापित करने का एक साधन है।