संसद का शीत सत्र धमकियों से ठिठुरता नजर आ रहा है। इस सात्र के पास कामकाज के लिए गिने-चुने दिन बचे है । सात्र 20 दिसंबर को समाप्त हो जाएग। 25 नवमबर से शुरू हुए इस सत्र में या तो हंगामा हुआ है या फिर आपस में धमकियां दी गयीं हैं। संसद के सदस्य ही नहीं बल्कि सभापति भी इस घातक,अलोकतांत्रिक और अप्रिय घटनाक्रम में शामिल हैं। संसद के शीत सत्र में जो नजीरें बन रहीं हैं वे आने वाले दिनों के लिए बड़ी कष्टदायक हो सकती है।
संसद के शीत सत्र की सबसे बड़ी त्रासदी राज्य सभा के सभापति के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव है। इस अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा हालाँकि ‘ ढांक के तीन पात ‘ जैसा ही निकलेगा, लेकिन इसके बहाने संसद में जिस तरह के संवाद हो रहे हैं,धमकियां दी जा रहें हैं वे बहुत ही अशोभनीय हैं। सभापति जगदीप धनकड़ खुद को किसान का बेटा कहकर विपक्ष के आगे न झुकने की बात कर रहे हैं ,वहीं विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे धनकड़ को अपने हुए अत्याचारों को गिनाकरधनकड़ को बोना साबित करने में लगे हैं। सदन में एक भी ऐसा नेता नहीं है है जो इस अप्रिय विवाद को सुलझाने के लिए आगे आया हो। सबके सब आपस में उलझ रहे हैं। जिस सदन में संविधान पर बहस होना चाहिए थी,उस सदन में बहस कम, मुठभेड़ें ज्यादा हो रहीं हैं।
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने जब जस्टिस लोया की मौत पर सवाल खड़े किए तो उस पर भी सदन में खासा हंगामा हो गया. संविधान को लेकर महुआ मोइत्रा ने संसद में अपनी बात की शुरुआत हिलाल फरीद की नज्म- ‘मुबारक घड़ी है.. से की। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने संविधान पर चर्चा के दौरान न्यायपालिका के रोल पर भी कई टिप्पणियां की. महुआ मोइत्रा ने पूर्व सीजेआई (डीवाई चंद्रचूड़) का बिना नाम लिए के उस बयान का भी जिक्र किया, जिसमें पूर्व चीफ जस्टिस ने राम मंदिर फैसले को लेकर कहा था कि उन्होंने फैसला देने से पहले भगवान का ध्यान लगाया था. महुआ मोइत्रा ने कहा कि हमको संविधान का ध्यान लगाने वाले जज चाहिए ना कि फैसला देने से पहले भगवान का ध्यान लगाने वाल। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस पर आपत्ति दर्ज़ करवाते हुए कहा कि महुआ मोइत्रा ने जो बातें कही है या तो वह उसको सदन में सत्यापित करें या फिर उनके खिलाफ संसदीय परंपरा के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
आपको याद हो की इसे पहले टीएमसी के कल्याण बनर्जी और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य के बीच भी बहस के दौरान धमकियों का आदान-प्रदान हो चुका है। बनर्जी ने सिंधिया को लेडी किलर कहा था ,तो सिंधिया ने भी उन्हें अपने तरिके से धमकाया था। ऐसी तमाम घटनाएं हैं जो बेहद अफसोसनाक लगती हैं। अब बहुत कम सदस्य ऐसे बचे हैं जिनके बोलते समय संसद में ‘पिन ड्राप सायलेंस ‘ की स्थितियां बनतीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बोले या विपक्ष के नेता हंगामा होता ही है ,क्योंकि दोनों ही पक्ष संयम,मर्यादा और सौन्जी का लगभग तिरस्कार कर चुके हैं। संसद केईए कार्रवाई में आ रही इस गिरावट के लिए विपक्ष और सत्ता पक्ष बराबरी से जिम्मेदार हैं। कभी-कभी तो लगता है की संसद सदस्य हों या सदस्य के साथ ही मंत्री सदन में आने से पहले ही सदन में हंगामा या ड्रामा करने जा मन बनाकर आते हैं। संसदीय कार्य करने की तैयारी न सरकार की दिखाई देती है और न विपक्ष की।
संसद संसदीय कार्यों के लिए बनी ह। देश के जव्व्लंत मुद्दों पार विमर्श कर रस्ते खोजने के लिए बनी है किन्तु दुर्भाग्य से संसद में यही सब कार्य नहीं हो रहे है। सरकार का अपना एजेंडा है और विपक्ष का अपना एजेंडा। देश का कोई एजेंडा नजर नहीं आता। मुझे आशंका ही नहीं बल्कि पक्का यकीन है की हमारी सरकार संसद में तमाम लंबित विधायी कामकाज बिना बहस के ध्वनिमत से ही कराएगी। क्योंकि सदन में बहस करना ,कराना कठिन है और ध्वनिमत से काम करना आसान। सरकार पिछले दस सा से संसद को ध्वनिमत से ही चलने की कोशिश करती रही है /
@ राकेश अचल