– रिपोर्ट:सुनील त्रिपाठी राष्ट्रीय प्रहरी
लाहौर हाई कोर्ट में भगत सिंह चौक पर विवाद
पाकिस्तान ने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को क्रांतिकारी नहीं बल्कि आतंकवादी और इस्लामी मूल्यों और संस्कृति के खिलाफ बताया है
आतंकवादी देश पाकिस्तान ने लादेन को शहीद और भगत सिंह को आतंकवादी बताकर इस्लामोफोबिया और कट्टरपंथी सोच को उजागर किया है।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की लाहौर हाई कोर्ट में भगत सिंह चौक (पूर्व में शादमान चौक) का नाम बदलने को लेकर विवाद जारी है। यह मामला 2018 में कोर्ट के एक आदेश से जुड़ा हुआ है, जिसमें चौक का नाम स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के नाम पर रखने का निर्देश दिया गया था। लेकिन, पाकिस्तान प्रशासन और कट्टरपंथी समूहों के विरोध के कारण इसे लागू नहीं किया गया।
अब इस मामले में पाकिस्तानी प्रशासन ने भगत सिंह को “आतंकवादी” और “अपराधी” करार देते हुए उनके नाम पर चौक का नाम रखने से इनकार किया है। प्रशासन का कहना है कि भगत सिंह ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की थी, जिसे वे एक अपराध मानते हैं। साथ ही, प्रशासन ने यह भी दावा किया कि भगत सिंह का नाम इस्लामिक मूल्यों और पाकिस्तानी संस्कृति के खिलाफ है।
भगत सिंह को आतंकवादी बताने की कोशिशें
भगत सिंह को भारत में स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नायक के रूप में सम्मान प्राप्त है। लेकिन पाकिस्तान में उन्हें आतंकवादी ठहराने की कोशिशें यह दर्शाती हैं कि वहां इतिहास को मजहबी और कट्टरपंथी दृष्टिकोण से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
भगत सिंह धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे। उन्होंने अपनी किताबों और लेखों में धार्मिक कट्टरता के विरोध में लिखा था। लेकिन पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतें हर ऐतिहासिक घटना को इस्लामी और गैर-इस्लामी नजरिए से देखने की प्रवृत्ति रखती हैं, जिससे ऐतिहासिक तथ्यों को बदलने की कोशिश की जाती है।
ओसामा बिन लादेन शहीद, भगत सिंह आतंकवादी!
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने अपने ऐतिहासिक और राजनीतिक रुख से वैश्विक मंच पर आलोचना बटोरी है। आतंकी ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने “शहीद” कहा था, जबकि भगत सिंह को आतंकवादी कहकर उनका अपमान किया जा रहा है।
यह विरोधाभास दर्शाता है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतें और सत्ता प्रतिष्ठान एक खतरनाक मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं, जहाँ वास्तविक स्वतंत्रता सेनानियों को नकारा जाता है और आतंकवादियों को महिमामंडित किया जाता है।
कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव में पाकिस्तान का इतिहास
भगत सिंह का जन्म 1907 में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) हुआ था। 1928 में ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में उन्हें 1931 में लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को भारत में वीर क्रांतिकारी माना जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
लेकिन, पाकिस्तान में इतिहास को इस्लामी दृष्टिकोण से परिभाषित करने की प्रवृत्ति रही है। वहाँ स्कूलों की किताबों में 1947 से पहले के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख लगभग न के बराबर किया जाता है, क्योंकि यह संघर्ष एक धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रीय भावना से प्रेरित था, जो पाकिस्तान की धार्मिक राष्ट्रवाद की विचारधारा से मेल नहीं खाता।
भगत सिंह की विचारधारा: धर्म से ऊपर, इंसानियत के पक्षधर
भगत सिंह किसी धर्म विशेष के समर्थक नहीं थे। उन्होंने अपनी किताब “मैं नास्तिक क्यों हूँ” में धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास के खिलाफ लिखा था। वे समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता के समर्थक थे।
भगत सिंह की फांसी से पहले लिखी गई उनकी आखिरी चिट्ठी में लिखा था –
“इन्कलाब जिंदाबाद”
उन्होंने जीवन भर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष किया और मजहब के आधार पर समाज को बाँटने का विरोध किया।
पाकिस्तान में भगत सिंह की विरासत पर विवाद
पाकिस्तान में कुछ बौद्धिक और प्रगतिशील वर्ग भगत सिंह को सम्मान देना चाहते हैं। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन इम्तियाज राशिद कुरैशी ने लाहौर हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है, जिसमें 2018 के आदेश को लागू करने की माँग की गई है। लेकिन पाकिस्तान के धार्मिक और राजनीतिक संगठनों का विरोध इस पर भारी पड़ रहा है।
खालिस्तानियों ने भगत सिंह को “काफिर” कहा
पाकिस्तान में ही नहीं, भारत में भी कुछ कट्टरपंथी गुटों ने भगत सिंह की विरासत पर सवाल उठाए हैं। खालिस्तानी संगठनों ने भगत सिंह को “काफिर” बताया क्योंकि वे धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे।
खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर, जिसे कनाडा में मारा गया, उसने भगत सिंह को “सिख विरोधी” बताया था। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि कट्टरपंथी ताकतें अपने एजेंडे के अनुसार इतिहास को बदलने की कोशिश करती हैं।
बांग्लादेश में ISKCON मंदिर पर हमला
इसी प्रकार, बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमले बढ़े हैं। हाल ही में बांग्लादेश में इस्कॉन (ISKCON) मंदिर को प्रतिबंधित करने की माँग कट्टरपंथी संगठनों ने की, क्योंकि वे इसे इस्लाम के खिलाफ मानते हैं।
इतिहास को संकीर्ण नजरिए से देखने की प्रवृत्ति खतरनाक
भगत सिंह की विरासत केवल भारत तक सीमित नहीं है। वे पूरे दक्षिण एशिया के नायक हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें मजहबी चश्मे से देखने की प्रवृत्ति यह दर्शाती है कि वहाँ इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
अगर हम इतिहास को केवल धार्मिक और सांप्रदायिक दृष्टिकोण से देखेंगे, तो हम सच्चाई से दूर चले जाएंगे। भगत सिंह का संदेश आज भी प्रासंगिक है –
“क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।”
भगत सिंह का अपमान पूरी मानवता का अपमान
भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को आतंकवादी कहने का प्रयास न केवल ऐतिहासिक तथ्यों का अपमान है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को भी धूमिल करने की कोशिश है। पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतों द्वारा इतिहास को बदलने के प्रयास न केवल वहाँ की जनता को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप की साझा संस्कृति और विरासत को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन को “शहीद” बताने और भगत सिंह को “आतंकवादी” कहने की मानसिकता इस्लामी कट्टरपंथ और इस्लामोफोबिया की जड़ें उजागर करती है। यह केवल भारत-पाकिस्तान का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरी मानवता और न्याय का प्रश्न है।
– लेखक: रविंद्र आर्य