जिस आदमी को आपने बुक्का फाड़कर हँसते हुए संसद से सड़कों तक,देश से दुनिया भर में देखा हो उसे रोता हुआ देखना पड़े तो दिल काँप जाता है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के एक्जिट पोल नतीजों को देखकर मुझे आशंका है कि कल तक हंसने वाले हमारे तमाम सुर्खरू चेहरे लटक न जाएँ,रो न पड़ें । मुझसे ये मंजर देखा नहीं जाएगा।
हकीकत ये है कि मै मतदान के बाद किये जाने वाले एक्जिट पोल पर यकीन नहीं करता । यकीन तो राजनीतिक दल और नेता भी नहीं करते लेकिन कभी-कभी ये पोल चौंका देते हैं । पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों हुए राजस्थान, मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में तमाम एक्जिट पोल औंधे मुंह गिरे थे और तीनों राज्यों में हमारी अपनी भाजपा की सरकारें बन गयीं थीं। सर्वे करने वालों ने मतदाताओं के मन में तो झाँकने की कोशिश की थी किन्तु मशीनरी के मन में झाँकने में नाकाम रहे थे।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में एक चुनावों से पहले भाजपा का घोषित-अघोषित राज रहा है । हरियाणा में पहले खटटर साहब थे ,चुनावों से पहले सैनी आ गये । जम्मू-कश्मीर में पहले सत्यपाल मलिक राज्यपाल हुआ करते थे,बाद में मनोज सिन्हा साहब बना दिए गया । सत्यपाल को सत्य बोलने की सजा मिली और मनोह सिन्हा को यूपी छोड़ने का ईनाम । लेकिन दोनों ने जम्मू-कश्मीर में भाजपा के लिए उसी तरह फील्डिंग की जैसे कि हरियाणा में चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्रियों ने की ,अब अचानक दोनों जगह पासा पलटता नजर आ रहा है। ये किसी टोटके की वजह से हुआ या जनता इन सब हुक्मरानों से आजिज आ गयी ,ये कहना मुश्किल है।
आप मानें या न मानें लेकिन मुझे लगता है कि अभी चुनाव नतीजे आने तक भाजपा हार नहीं मानेगी । उसे हार मानना भी नहीं चाहिये । उसने पहले तीनं राज्यों में हार कहाँ मानी थी ,जो अब मान ले ! आपको याद है न आम चुनावों के बाद भले ही भाजपा 400 पार नहीं कर पायी थी । उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। भाजपा को लंगड़ा जनादेश मिला तो उसने आनन-फानन में जेडीयू और टीडीपी की बैशाखियाँ लगाना स्वीकार कर लिया था । मुझे आशंका है कि भाजपा हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी अंत तक अपने लिए बैशखियाँ तलाश करेगी। अब ये बात अलग है कि बैशखियाँ मिलना ही बंद हो जाएँ।
पहले जम्मू-कश्मीर की ही बात कर लेते हैं,क्योंकि यहां दस साल बाद चुनाव हुए हैं और तब हुए हैं जब इस इलाके को राज्य का दर्जा हासिल नहीं है । केंद्र की सरकार ने पांच साल पहले जम्मू-कश्मीर की जनता को सबक सीखने के लिए आतंकवाद रोकने के नाम पर न सिर्फ राज्य का दर्जा छीना था ,न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले खास दर्जे को छीना था बल्कि उसके तीन टुकड़े भी कर दिए थे और जाफरान के खेतों पर राज्यपाल के रूप में अपने पहरेदार बैठा दिए थे। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पहली बार नहीं लगा । पहले भी यहां 9 बार राष्ट्रपति शासन रह चुका है । सबसे ज्यादा राष्ट्रपति शासन तो कांग्रेस के जमाने में लगाया गया,लेकिन कांग्रेस ने कभी कश्मीरियों से उनका राज्य का दर्जा नहीं छीना । जम्मू-कश्मीर के महाराजा डॉ कर्ण सिंह से लेकर मनोज सिन्हा साहब तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे ,लेकिन जैसा हाल अबकी बार है वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
जम्मू-कश्मीर में भाजपा अलावा कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी समेत अन्य छोटे-छोटे दलों ने लोकतंत्र की बहाली के इस अभियान में हिस्सा लिया था। एक्जिट पोल के नतीजों के अनुसार, केंद्र प्रशासित प्रदेश में बीजेपी को 27 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। इसके अलावा कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन को 41 सीटें मिल सकती हैं। सबसे ज्यादा नुकसान महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को होने के आसार जताए गए हैं। पिछले चुनाव में पीडीपी को दोहरे अंकों में सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार पार्टी को महज सात सीटें मिलने के आसार हैं। पीडीपी से ज्यादा ताकतवर निर्दलीय हो सकते हैं. उनके खाते में 15 सीटें जाने की संभावना है। यहां 5 विधायकों के मनोनयन का अधिकार केंद्र ने पहले ही राज्यपाल को दे दिया है।
अपने लम्बे ,लचर अनुभव के आधार पर मै एक ही बात कह सकता हूँ कि जम्मू-कश्मीर में चाहे जिस गठबंधन की सरकार बने लेकिन मुख्यमंत्री फिलहाल डॉ फारुख अब्दुल्ला साहब ही होंगे । वे सत्ता में आने का अमरीका के राष्ट्र्पति जो वायडन का कीर्तिमान भांग करेंगे। डॉ फारुख साहब ८५ के हैं और फिट हैं। वे जितने हिन्दुओं में लोकप्रिय है उतने ही मुसलमानों में। वे जितने सहज कांग्रेस के साथ हो सकते हैं उतने ही भाजपा के साथ भी। वे हालत के मुताबिक ढलने में सिद्धहस्त हैं ,इसलिए मै उन्हें अभी से मुबारकबाद देकर फारिग होना चाहता हूँ। टूटे हुए सूबे की जनता डॉ फारुख के बेटे उम्र अब्दुल्ला को शायद बर्दाश्त नहीं करेगी।
अब आइये हरियाणा की बात करें। हरियाणा में असली महाभारत हुई है। । यहां के एक्जिट पोल में सब एकराय हैं चाहे वे सर्वेयर गोदी मीडिया के हों या दूसरे। सबका कहना है कि हरियाणा में कांग्रेस की जो हवा चली थी वो पहले आंधी बनी और बाद में सुनामी में तब्दील हो गयी। अब मुमकिन है की 8 अक्टूबर को हरियाणा में भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो जाये। इंडिया टुडे-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक, हरियाणा में कांग्रेस को 50 से 58 सीटें मिलने का अनुमान है। बीजेपी को 20 से 28 सीटें मिल सकती हैं।
दोनों विधानसभाओं के नतीजे आने के बाद ही असली तस्वीर सामने आएगी । इससे पहले मतगणना में भाजपा सरकार की मशीनरी कितना,क्या खेल कर पायेगी कहना कठिन है क्योंकि अंतर् बहुत ज्यादा माना जा रहा है ,लेकिन ‘ जानी न जाये निसाचर माया । भाजपा कब कहाँ आपरेशन लोट्स चला दे ,कब ,कहां नवनिर्वाचित छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को अपनी अदृश्य चुंबक से अपनी और खींच ले ,कोई जानता है क्या ? वैसे इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे जहाँ देश में लड्डुयों के बजाय जलेबियों का भविष्य उज्ज्वल करेंगे ,वहीं भाजपा के लिए हर जगह वैशखियों की जरूरत को बढ़ने वाले होंगे । जब तक नतीजे आएंगे तब तक आइये मिलकर गाते हैं-‘ इबतदाये इश्क में हम सारी रात जागे,अल्ला जाने क्या होगा आगे ? आपको यदि ये गाना पसंद न हो तो आप- देख सकता हूँ मै कुछ भी होते हुए। नहीं मै ,नहीं देख सकता तुझे रोते हुए’ भी गा सकते हैं
@ राकेश अचल