राकेश अचल
भारत को 2014 में मिली असली आजादी के बाद भाजपा से लगातार जूझ रही कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा नकारे जाने के बाद क्या ये लगने लगा है कि -कांग्रेस अब एक डूबता जहाज है और अब कोई दूसरा दल इस पर सवारी नहीं करना चाहेगा ? सवाल जायज भी है और इस पर विमर्श भी होना चाहिए। बल्कि यूं कहें कि इस मुद्दे पर विमर्श शुरू भी हो चुका है। 2026 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में रहने या कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इंकार कर इस विमर्श का श्रीगणेश कर दिया है।
इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि देश में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मोर्चा लेने में कांग्रेस शुरू से अग्रणीय रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मात्र 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस ने मैदान नहीं छोड़ा। भाजपा ने तब 286 सीटें अकेले दम पर जीती थीं। पांच साल लगातार विपक्ष में बैठने के बावजूद कांग्रेस अपने ढंग से काम करती रही और 2019 के चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों से बढ़कर 52 सीटों पर आ गयी। कांग्रेस के लिए हालाँकि ये कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी ,लेकिन कुल 8 सीटें ज्यादा हासिल कर कांग्रेस को थोड़ी -बहुत ऊर्जा जरूर मिली। डूबते को तिनके का सहारा होता है।
लगातार दूसरी जीत के बाद भाजपा की चाल,चरित्र और चेहरे में अप्रत्याशित रूप से बदलाव आया । भाजपा ने अपने दूसरे कार्यकाल में पूरी ताकत से अपने एजेंडे पर काम करना शुरू किया। जम्मो-कश्मीर से धारा 370 हटाई, अयोध्या में राममंदिर बनाने का रास्ता साफ़ कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर उसे पूरा भी किया और लगातार एक के बाद एक राज्यों में अपनी बढ़त बनाई ,लेकिन कांग्रेस पीछे नहीं हटी । कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ भाजपा के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा की नफरत के मुकाबले मुहब्बत की दूकान खोली । पूरे देश में दो बार पदयात्रा कर जन-जागरण की कोशिश की ,परिणाम स्वरूप 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस जहाँ 52 से आगे बढ़कर 99 पर पहुंची ,वहीं भाजपा का 400 पार का सपना चकनाचूर हो गया और भाजपा 240 पर सिमिट गयी।
भारत की राजनीति में कांग्रेस का उत्थान और पतन होता ही रहा है। एक लम्बी दास्तान है कांग्रेस के उत्थान और पतन की। 4 जून 2024 के बाद पिछले 9 महीने में देश में जितने भी विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं उनमें से कर्नाटक,केरल,हिमाचल प्रदेश और झारखण्ड को छोड़ कांग्रेस कहीं भी भाजपा का विजय रथ नहीं रोक सकी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ़ हो गया ,और इसी के साथ कांग्रेस की अगुवाई में बने आईएनडीआईए यानि इंडिया गठबंधन में विखराव शुरू हो गया। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का साथ और हाथ दोनों छोड़े और सत्ता से बाहर हो गयी। महाराष्ट्र में भी भाजपा ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया । हरियाणा में भी कांग्रेस के जीत के सपने को तोड़ा और अब उसका निशाना कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन भी है।
भाजपा बिहार में विधानसभा के चुनाव से पहले कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की कमर तोड़ देना चाहती है। बिहार में चुनाव इसी साल अक्टूबर में होना है । अगले साल बंगाल का नंबर है। बिहार विधानसभा चुनावों से पहले बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया है। बिहार में कांग्रेस का राजद से गठबंधन है। यहां क्या होगा कहना कठिन है। लेकिन कांग्रेस के लगातार अकेले पड़ने की वजह से जहाँ देश में क्षेत्रीय दल एक-एककर भाजपा के शिकार बन रहे हैं वहीं कांग्रेस के वजूद पर भी प्रश्नचिन्ह भी लगते जा रहे हैं। ये तय है कि कांग्रेस जिस मुखरता से हार-जीत की परवाह किये बिना भाजपा का मुकाबला कर रही है उतनी दम देश के किसी और राजनीतिक दल में नहीं है । कांग्रेस का साथ न देकर बीजद ने उड़ीसा खोया है तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली गंवा दी है और यदि तृणमूल कांग्रेस भी यही गलती करती है तो तय मानिये की उसका हश्र भी बीजद और आम आदमी पार्टी जैसा ही होगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी 2026 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी । कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी के गठबंधन से उन्होंने इनकार किया है, क्योंकि उसने कांग्रेस को ‘ डूबता जहाज ‘ मान लिया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सचमुच ममता बनर्जी की पार्टी जैसा सोच रही है वैसा ही दूसरे विपक्षी दल भी सोच रहे हैं ? अभी तक उद्धव ठाकरे की शिव सेना हो या तेजस्वी यादव की राजद या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ,इन सभी ने कांग्रेस का न हाथ छोड़ा है और न साथ। जब तक ये सभी कांग्रेस के साथ हैं तब तक कांग्रेस को डूबता जहाज मानना टीएमसी की एक भूल के सिवाय कुछ भी नहीं है। आपको बता दें की ममता बनर्जी ने अपने विधायकों और मंत्रियों से कहा कि टीएमसी 294 सीटों वाली राज्य विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत के साथ 2026 का चुनाव अपने दम पर जीतेगी।
मुझे न ममता बनर्जी के आत्म विश्वास पर संदेह है और न कांग्रेस के डूबने को लेकर कोई शक। लेकिन मेरा मानना है कि कांग्रेस विहीन भारत की कल्पना को साकार करने में भाजपा को अभी लम्बी लड़ाई लड़ना पड़ेगी। कांग्रेस का डीएनए अमीबा जैसा है। अमीबा कभी मरता नहीं है। अमीबा जितना विखंडित होता है उतना ही विकसित होता जाता है। कांग्रेस पिछले सवा सौ साल में दर्जनों बार विभाजित,पराजित हुई है लेकिन समाप्त नहीं हुई ,अर्थात उसका जहाज कभी भी टाइटेनिक की तरह समुद्र की सतह में नहीं समाया। कांग्रेस डूबकर भी हर बार सतह पर आयी है। न भी आये तो देश कहीं जाने वाला नहीं है।
कांग्रेस विहीन भारत कैसा होगा इसकी कल्पना न ममता बनर्जी को है और न अरविंद केजरीवाल को। जिन्हें है वे कांग्रेस के साथ खड़े हैं ,जिन्हें जाना है वे जायेंगे भी । कांग्रेस शायद ही जाने वालों की चिरोरियाँ करे। कांग्रेस को लड़ने की आदत है ,चिरोरियाँ करने की नहीं। कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व कांग्रेस की दशा-दुर्दशा की समीक्षा खुद करेगा। नहीं करेगा तो भाजपा के गाल में समा जाएगी कांग्रेस। लेकिन ऐसा समय कब आएगा ,कहना कठिन है। हमें अभी अक्टूबर में बिहार का घमासान भी देखना है और अगले साल बंगाल का भी। भविष्य में किसका जहाज डूबेगा और किसका नहीं ये देखना बाकी है।