राकेश अचल
पुण्य कमाने के लिए प्रयागराज में संगम नोज पर हुई भगदड़ में मारे गए निर्दोष लोगों का खून अभी सूखा भी नहीं है कि आयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गयी। मरने वालों की शायद आ गयी थी । उनकी किस्मत में ही शायद भगदड़ में कुचलकर मरना लिखा था,अन्यथा रेलवे स्टेशन पर तो न कोई मेला था और न कोई मजार। फिर भी भगदड़ हुई और हमेशा की तरह निर्देंश लोग मारे गए लेकिन संगदिल सरकार में से इस बार भी कोई इस भगदड़ की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर अपने पद से इस्तीफा नहीं देगा।
अभी पिछले हफ्ते ही मैं विश्व पुस्तक मेला में शामिल होने के लिए नई दिल्ली गया था। उस वक्त भी स्टेशनों पर अराजकता थी । दिल्ली का कोई भी स्टेशन हो इसी तरह की अराजकता का शिकार होता है जैसा कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन था। स्टेशन पर हुई भगदड़ की वजह जाहिर है कि स्थितियों का सही आकलन न होने के साथ ही रेलों की आवाजाही की घोषणाओं में कोई तालमेल न होना भी रहा होगा। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ की शिकार भीड़ भी धर्मांध भीड़ रही होगी,क्योंकि जायदातर लोग कुंभारथी थे। इस बार के कुम्भ को महाकुम्भ बनाकर यूपी की सरकार ने जो पाप किया है उसीका फल है की जैसी भगदड़ संगम नोज पर हुई वैसी ही भगदड़ नयी दिल्ली रेल स्टेशन पर हुई।
भगदड़ में अभी 18 रेल यात्रियों की मौत का आधिकारिक आंकड़ा आया है ,ये आगे बढ़ भी सकता है ,लेकिन अभी तक किसी ने इस भगदड़ के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं ली है। सरकार मानती है कि भगदड़ के लिए तंत्र जिम्मेदार होता ही नहीं है ,जिम्मेदार होती है खुद भीड़। इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री जी का काम है कि मरने वालों के प्रति शोक जतायें सो उन्होंने जता दिया। गनीमत है कि दिल्ली में अब आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं है अन्यथा इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के लिए केजरीवाल को जिम्मेदार ठहराया जा सकता थी ।
रेलवे स्टेशन पर आखिर इतनी भीड़ आयी कहाँ से ?क्या रेलवे प्रशासन को स्टेशन पर भीड़ बढ़ने की कोई खबर नहीं थी ?क्या स्टेशनों पर भीड़ नियंत्रण का कोई मैकेनिज्म रेल मंत्रालय के पास मौजूद नहीं है।
भगदड़ प्लेटफार्म नंबर 13 पर बताई जा रही है ,लेकिन ये भगदड़ किसी एक प्लेटफार्म की नहीं बल्कि पूरे स्टेशन की बदइन्तजामियत का नतीजा है। मैंने चीन की राजधानी बीजिंग में देखा है की स्टेशन के भीतर और बाहर भीड़ नियन्तण की दोहरी व्यवस्था होती ह। पहले भीड़ को प्लेटफार्म के बाहर प्रतीक्षालय में रोका जाता है। बाद में प्लेटफार्म पार उन्हीं टिकटार्थियों को जाने दिया जाता है जिनकी रेल का समय आने का होता है। रेल के एते ही सवारियां कतार लगाकर कोच में प्रवेश करतीं है और जैसे ही सभी यात्री कोच के अंदर पहुँच जाते हैं ,रेल को रवाना कर दिया जाता है। यानि प्लेटफार्म एकदम खाली हो जाता है। हमारे यहां प्लेटफार्म विश्रामगृह भी है और प्रतीक्षालय भी। प्लेटफार्म पर रेल यात्री ,उनके परिजन भी होते हैं। और बैंडर भी हैं और यहीं भिखारी भीख भी मांगते-मांगते सो सकते हैं।
रेल मंत्रालय के प्रवक्ता दिलीप कुमार ने बताया है, “रात में प्रयागराज एक्सप्रेस और मगध एक्सप्रेस ट्रेंनो के लिए बहुत पैसेंजर आ गए और सबको लगा कि ये आखिरी ट्रेन है इसी से चले जायेंगे.। प्रयागराज एक्सप्रेस उसी में ये धक्के जैसी स्थिति हुई है, बाकी पूरी जानकारी सीसीटीवी देखने के बाद पता चलेगी. डीजी आरपीएफ और चेयरमैन रेलवे बोर्ड स्टेशन पर हैं, वो देखेंगे क्या हुआ है. हमने हाई पावर कमेटी बनाई है, मामले की जांच के लिए.। हमारी पूरी सरकार दिल्ली में बैठी है लेकिन कोई स्टेशन की और नहीं दौड़ता । सबके सब सोशल मीडिया के जरिये मातम मनाकर अपनी जिम्मेदारी से निवृत्त हो जाते हैं। गनीमत है की घटनास्थल पर रेलवे बोर्ड के चेयरमैन सतीश कुमार, आरपीएफ के महानिदेशक समेत कई अधिकारी पहुंचे।
भारत में भगदड़ संगम के तट पर हो या किसी मंदिर में या किसी रेल स्टेशन पर ,सभी के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं होत। जनता ही होती है। इस हादसे के बाद मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजा देकर मामले की इतिश्री कर दी जाएगी। क्योंकि इस देश में नागरिकों की हैसियत कीड़े-मकोड़ों जैसी है। इसलिए हे भारतीयों सरकार के भरोसे मत रहो। अपने जान-माल की रक्षा खुद किया करो।रेल मंत्रालय को चाहिए की वो अपनी व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करे। केवल धर्म का धंधा करने से से काम नहीं चलने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में भगदड़ें भारत की सबसे बड़ी समस्या बनने वाली हैं। मोदी जी को इसके लिए पृथक से मंत्रालय बनाना होगा।