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3 Feb 2025, Mon

गंगा के घाटन में ,काफिर बसंत है……

राकेश अचल

कल भी बसंत था,आज भी बसंत है। बसंत इसलिए है क्योंकि इसका कभी अंत नहीं होता। ये बारह साल में नहीं बल्कि हर साल आता है और हर जगह आता है। ये मजहब नहीं देखता । बसंत धर्म निरपेक्ष है। हिन्दुओं के यहां भी दस्तक देता है और मुसलमानों के यहाँ भी । सिखों के यहां भी और ईसाइयों के यहां भी। बसंत का इन्तजार सभी को होता है। आइये पहले अपने-अपने ठिकाने पर बसंत का स्वागत करें, इस्तकबाल करें ,खैर-मकदम करें।

मुझे अबकी बसंत पिछले बसंत से एकदम अलग लग रहा है। अलग है , इसलिए अलग लग रहा है। इस बार का बसंत प्रयागराज में बहने वाली गंगा के तटों पर भी अलग है और अल्लाहबाद की मस्जिदों में भी अलग है। जो लोग पुण्य सलिला गंगा में डुबकी लगाने प्रयागराज आ रहे हैं उन्हें यदि भगदड़ के दौरान कहीं जगह नहीं मिली तो उन्हें अल्लाहबाद की मस्जिदों ने अपना मेहमान बना लिया। उनका हर तरह से ख्याल रखा। सनातनियों की सेवा करने के लिए किसी योगी सरकार ने इन मस्जिदों को नहीं खुलवाया । ये अपने -आप खुलीं। इंसानियत के नाते खुली। योगी सरकार के लिए तो ये मस्जिदें विधर्मियों की इबादतगाहें हैं। यहां सनातनी झाँक भी लें तो अपवित्र हो जाएँ। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मस्जिदों में शरण लेने वाले किसी भी सनातनी का धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ।

अल्लामा इकबाल इसीलिए कहकर गए कि-‘ मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना।’ आपस में बैर करना तो सियासत सिखाती है । मजहब का नाम लेकर। श्रीमद भागवत में भी विधर्मियों के घरों पर बुलडोजर चलाये जाने का कोई निर्देश नहीं है ,लेकिन ये योगी कि भागवत में है। डॉ मोहन भागवत की भागवत में है। उनके लिए काफिर तो काफिर है। उसे बर्दाश्त किया ही नहीं जा सकत। मोहन की भागवत हो या योगी की या धीरेन्द्र शास्त्री की चौपटिया , सभी में ये मुल्क केवल और केवल सनातनियों का मुल्क है । हिन्दुओं का मुल्क है । हिन्दुओं की ही बापौती है इस मुल्क पर। लेकिन आपाद स्थितियां ये प्रमाणित करती है कि ये मुल्क सभी का है। जितना हिन्दुओं का ,उतना ही मुसलमानों का,उतना ही सिखों का,उतना ही ईसाइयों का।

मजहब यदि केवल बैर करना सिखाता होता तो मौनी अमवस्या पर प्रयागराज में हुई भगदड़ के बाद इलाहबाद में फंसे लोगों के लिए मस्जिदों के दरवाजे नहीं खुलते । मस्जिदों के दरवाजे बसंत पंचमी पर भी तीसरे शाही स्नान के दिन भी खुले है। बसंत पंचमी के मौके पर प्रयागराज महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को शहर में ठहराने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मस्जिदों और मदरसों के दरवाजे एक बार फिर खोल दिए हैं. श्रद्धालुओं के लिए इबादतग़ाहों में खास इंतजाम किए गए हैं. उनके ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्थाएं की गई हैं. शहरी इलाके की तकरीबन पचास मस्जिदों – दरगाहों और मदरसों में इंतजाम किए गए हैं।। मुख्यमंत्री योगी में या किसी अखाड़े में दम हो तो हिन्दू श्रृद्धालुओं से कहे कि वे मस्जिदों में न जाए। मुसलमानों का आतिथ्य स्वीकार न करें। लेकिन ये मुमकिन नहीं है।

करोड़ों लोग संगम और गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित कर रहे है। पाप धो रहे है। मोक्ष का दरवाजा खटखटा रहे हैं है। वहीं दूसरी तरफ अल्लाहाबाद के हजारों मुसलमान हैं जो बिना गंगा स्नान किये जन्नत की और बढ़ रहे हैं विधर्मी सनातनियों की सेवा कर। इसके लिए किसी ने फतवा जारी नहीं किया। इसके लिए इंसानियत ने प्रेरणा दी। ऐसा प्रयागराज में ही नहीं हुआ । ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ । ऐसा हमेशा होता है। देश कोई आजादी के पहले और बाद के दांगों के समय भी हुआ था। हिन्दुओं ने मुसलमान को और मुसलमानों ने हिन्दुओं की रक्षा की थी। जो लोग कत्लो-गारद कर रहे थे वे जानवर थे ,इधर के भी और उधर के भी।

संगम नोज पर भगदड़ के बाद संत समाज के बीच प्रवचन देने आये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में यदि जरा भी अक्ल होती तो वे अकलियत के उन लोगों का आभार जरूर व्यक्त करते जिन्होंने ने मस्जिदों के दरवाजे सनातनियों के लिए खोले। उन्हें पानी पिलाया। उन्हें चैन की नींद सोने दिया। कोई माने या न माने की उत्तर प्रदेश की सरकार आपदा के समय यही नहीं बल्कि जरूरत के समय भी विधर्मियों द्वारा किये गए उपकार और सद्भाव का कर्ज कभी भी नहीं उतार पाएंगे। योगी तो वे योगी हैं जो कावंड यात्रा के दौरान मुसलमानों के ठेलों और ढाबों तक पर पाबंदी लगा देते हैं। उनसे उदारता और सद्भाव की अपेक्षा करना ही बेमानी है। वे जब सनातन धर्म के शीर्ष माने जाने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के प्रति उदार नहीं है तो मुसलमानों के प्रति उदार कैसे हो सकते हैं ? वे संगदिल थे ,वे संगदिल हैं और वे संगदिल रहेंगे। लेकिन उनकी संगदिली से बसंत घबड़ाने वाला नहीं है। वो काफिर ही सही लेकिन प्रयागराज में गंगा के तटों पर भी बिखरा दिखाई देगा और पूरी कायनात में।

बसंत इसी तरह आता रहता है । कहीं स्प्रिंग बनकर ,तो कहीं किसी और रूप में। बसंत पर हमारे कवियों ने बहुत लिखा है। मै उसे दुहरा भी नहीं सकता। लेकिन मुझे याद है कि बसंत कूलन में ,कछारन में तो बगरता ही है लोगों के दिलों में भी बगरता है। बसंत ही है जो नहीं सिखाता आपस में बैर करना। इसलिए आइये बसंत मनाएं। आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। बसंत एक दिन का नहीं है। ये एक मौसम है जो पूरी प्रकृति को रंग-बिरंगा करके ही जाएगा। कायाकल्प करना ही इसका धर्म है।

By archana

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