बसन्त पर्व पर वाग्देवी पूजन, सारस्वत सम्मान एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ.वाग्देवी सरस्वती और वसन्त पर्व: भारतीय ज्ञान परम्परा के परिप्रेक्ष्य में पर विमर्श हुआ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वरिष्ठ विद्वान पद्मश्री डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित एवं श्रीमती निर्मला राजपुरोहित का सारस्वत सम्मान किया गया, निराला जयंती पर महाप्राण का स्मरण किया विद्वानों ने बसंत पंचमी पर्व के पावन अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के वाग्देवी भवन में दिनांक 3 फरवरी, सोमवार को दोपहर में वाग्देवी सरस्वती का पूजन किया गया। इस अवसर पर वाग्देवी सरस्वती और वसन्त पर्व : भारतीय ज्ञान परम्परा के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विख्यात कवि महाप्राण निराला जयंती के अवसर पर उनके तैलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ विद्वान पद्मश्री डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, ओस्लो नॉर्वे से वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक थे। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। विशिष्ट अतिथि फिलाडेल्फिया यूएसए से डॉ मीरा सिंह, प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह, लखनऊ, डॉ पुष्पेंद्र दुबे, इंदौर, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, श्रीमती निर्मला राजपुरोहित, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा वरिष्ठ विद्वान पद्मश्री डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित एवं श्रीमती निर्मला राजपुरोहित को शॉल, श्रीफल एवं साहित्य भेंट कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।
पद्मश्री डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परम्परा और बसंत पर्व पर चर्चा करते हुए कहा कि सुदूर अतीत में वैदिक साहित्य से लेकर अब तक सरस्वती नदी और वाणी की देवी का महत्वपूर्ण वर्णन मिलता है। सरस्वती नदी के तटों पर ही सभ्यता का विकास हुआ है। भारत को जानना हो तो पुराणों के माध्यम से जान सकते हैं। उनमें जीवन के हर पहलुओं के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है। राजा भोज ने कई स्थानों पर सरस्वती कंठाभरण भवन का निर्माण करवाया जिनमें से एक उज्जैन भी है। उज्जैन का प्राचीन सरस्वती सदन पहले भारती भवन नाम से भी जाना जाता था। राजा भोज ने वाग्देवी की सरस स्तुति लिखी है, जिसमें पैंतीस श्लोक हैं। शब्द के उच्चारण और उल्लेख के बिना अर्थ प्राप्त नहीं हो सकते।
नॉर्वे के साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने अपने वक्तव्य में वसन्त पर्व पर केंद्रित अपनी रचना का पाठ करते हुए कहा कि नॉर्वे में भी सरस्वती पूजन का बहुत महत्व है। बसंत पर्व के साथ ही नॉर्वे के वातावरण में भी परिवर्तन आने लगता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज जिसे हम साहित्य के रूप में देखते हैं वह कहीं न कहीं लोक में पहले से व्याप्त रहता है। संस्कृत भाषा और मातृभाषा हमें जीवन के प्रति एक दृष्टि देती है। बसंत ऋतु हमें परिवर्तन की प्रेरणा देती है, जो अनुपयोगी है उसे त्याग कर जो उपयोगी और नवीन है, उसे अपनाने की आवश्यकता है।
कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा का मूल उत्स वाग्देवी सरस्वती और ऋग्वेद में है। सरस्वती के आविर्भाव से ही यह सृष्टि जड़ता से मुक्त हो सरस हुई। भारतीय संस्कृति में सरस्वती परम चेतना रूप हैं। वे हमारी मेधा, प्रज्ञा, ऐश्वर्य तथा मनोवृत्तियों की आधार हैं। हममें जो आचार और बुद्धि है वह उनके कारण ही है। ऋतुराज बसंत समऋतु का परिचायक है। वह ज्ञानी, कवि, कलाकार, देव, मनुष्य सभी को समान भाव से आह्लादित करता है। उज्जैन का गहरा संबंध वाग्देवी की उपासना परम्परा से है। महाप्राण निराला ने देवी सरस्वती से युगानुरूप स्वतंत्रता का मंत्र फूंकने का आह्वान किया।
प्रो योगेन्द्रप्रताप सिंह लखनऊ ने कहा कि रीतिकालीन कविताओं में वसन्त के कई रूपों का सरस वर्णन हुआ है। उन्होंने देव की कविता वाचन कर बसंत की महत्ता पर चर्चा की।
डॉ. पुष्पेंद्र दुबे इंदौर ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परम्परा और शब्द विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि जिस देश की शब्द परंपरा जितनी समृद्ध होगी उस देश का नैतिक विकास उतना ही अधिक होता है। युवा पीढ़ी को चाहिए कि शब्द साधना करके साहित्य और ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाना चाहिए। भारत को अपशब्द मुक्त बनाना हम सब का कर्तव्य होना चाहिए।
फिलाडेल्फिया, यूएसए से डॉ मीरा सिंह ने वाग्देवी सरस्वती पर केंद्रित स्वरचित कविता का पाठ किया। उन्होंने माता सरस्वती और बसन्त पर्व पर अपने विचार भी व्यक्त किए।
हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में वाग्देवी भवन में स्थित वाग्देवी प्रतिमा पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माल्यार्पण एवं पूजन किया गया। वाग्देवी पूजन पं महेंद्र पंड्या ने करवाई। ललित कला अध्ययनशाला के विद्यार्थियों ने युवा कलाकार जीत डे द्वारा बनाई गई वाग्देवी की चित्रकृति विभाग को अर्पित की। महान कवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जयंती के अवसर पर निराला जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।
व्याख्यान सत्र में डीएसडब्ल्यू प्रो एस के मिश्रा, प्रो डी डी बेदिया, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ प्रभु चौधरी, श्री मानसिंह चौधरी, डॉ हीना तिवारी, डॉ महिमा मरमट आदि सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थियों ने भाग लिया।
संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया और आभार प्रदर्शन प्रो. गीता नायक ने किया।