हिंदी का वैश्विक प्रसार हमारे गौरव का विषय है – सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो
विक्रम विश्वविद्यालय में सोल्लास मनाया गया विश्व हिंदी दिवस उत्सव एवं प्रवासी भारतीय दिवस
अलका कुमारी की बहुरंगी चित्रकृति भक्त कवयित्री मीरा – श्रीकृष्ण हिंदी विभाग में अर्पित
उज्जैन : विश्व हिंदी दिवस उत्सव, प्रवासी भारतीय दिवस एवं हिंदी : एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक वाणी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के वाग्देवी भवन में 10 जनवरी शुक्रवार को दोपहर में किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने की। विशिष्ट अतिथि आईडीबीआई बैंक मुंबई के पूर्व महाप्रबंधक राजभाषा, डॉ शशांक दुबे, विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, फिलाडेल्फिया यूएसए की विदुषी डॉ मीरा सिंह, वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सतीश दवे, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा एवं श्री संतोष सुपेकर ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। आयोजन में ललित कला अध्ययनशाला की युवा कलाकार अलका कुमारी, लखीसराय, बिहार ने विश्व हिंदी दिवस के अवसर बनाई विशिष्ट चित्रकृति भक्त कवयित्री मीरा – श्रीकृष्ण हिंदी अध्ययनशाला के संग्रहालय के लिए अर्पित की।
अपने उद्बोधन में ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि हिंदी का प्रसार संपूर्ण विश्व में है, इसका हमें गौरव होना चाहिए। नॉर्वे सहित स्केंडनेवियन देशों से अनेक हिंदी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। विगत चार से अधिक दशकों से नॉर्वे से हिंदी पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। हिंदी के महान संतों की वाणी पूरी दुनिया में पहुँची है।
विशिष्ट अतिथि पूर्व महाप्रबंधक राजभाषा, मुंबई डॉ शशांक दुबे ने कहा कि पूरी दुनिया में हिंदी सिनेमा के कारण भारतीय संस्कृति और हिंदी के संवाद पहुंचे हैं। गीत, संगीत और संवाद के कारण हिंदी सिनेमा पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। फिल्म का संगीत हमारे जीवन के विभिन्न अवसरों, त्योहार, विवाह आदि में रच बस गया है। फिल्मी गीतों ने न केवल आम जनमानस के भाव और विचारों को वाणी दी है, वहीं रुचि का परिष्कार भी किया है। हिंदी के सशक्त संवादों ने लोगों की जबान पर अपना स्थान बना लिया है।
अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति की परिचायक बनाकर विदेश में पहुंची। जी 20 सम्मेलन में आए विदेशी मेहमान भारतीय पद्धति से अभिवादन करते हुए एक दूसरे से मिल रहे थे। भाषा से मनुष्य की पहचान होती है। वर्तमान में मोबाइल जैसे माध्यमों से हिंग्लिश को बढ़ावा मिल रहा है। भाषा को मिश्रित होने से बचाना आवश्यक है। हिंदी की साधना माता के पूजन के समान है।
मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी अलग-अलग महाद्वीप और भूखंड के लोगों को जोड़ने का माध्यम है। हिंदी भारत ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व की भाषा है। इसे विश्व भाषा का स्थान दिलाने में दुनिया के कोने कोने में बसे सभी समुदायों के लोगों का योगदान है। आज दुनिया के डेढ़ अरब से अधिक लोग हिंदी भाषा को जानते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के समय में हिंदी आज पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति और गौरवशाली सभ्यता की पर्याय बन गई है। हिंदी मानवीय एकता की भाषा है। जो कार्य सहस्राब्दियों से संस्कृत कर रही थी, वही काम आज हिंदी कर रही है। प्रवासी भारतीय दिवस और विश्व हिंदी दिवस हमारे स्वाभिमान के प्रतीक हैं।
फिलाडेल्फिया, यूएसए की विदुषी डॉ मीरा सिंह ने कहा कि प्रवासी साहित्यकारों की अभिलाषा है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए। उन्होंने अपनी काव्य पंक्तियां सुनाईं, सभी देश को नाज है उनकी अपनी भाषा पर, हिंदी भाषा अमर रहे यह है भारतीयों की भाषा।
प्रो गीता नायक ने कहा कि विश्व में प्रसारित हिंदी को यदि हम देखें तो उसमें बाजार की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई दे रही है। 21वीं सदी भारत की है। उसके मूल में आत्मनिर्भर भारत और हिंदी के वैश्विक प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया के अनेक देशों में हिंदी अध्ययन केंद्र हैं। हिंदी के बिना लोकतंत्र अधूरा है।
प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा के विकास में अनेक हिंदीतर भाषियों ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। विश्व हिंदी दिवस हमें इस दिशा में तत्पर करता है कि हिंदी को हम स्वतंत्र चिंतन की भाषा बनाएं।
वरिष्ठ लघु कथाकार श्री संतोष सुपेकर ने हिंदी लघु कथा और वैश्विक स्वरूप पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि नया रास्ता नई दिशा में चलने से ही मिलेगा, दीवारों से टकराने से नहीं। उन्होंने अनेक लघु कथाओं के माध्यम से समाज जीवन में आ रहे परिवर्तन और मूल्यों के विघटन की ओर संकेत किया।
वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सतीश दवे ने कहा कि विश्व रंगमंच पर हिंदी का बोलबाला है। कोई भी भाषा अन्य भाषा से सामग्री लेकर समृद्ध होती है। आज राम कथा पर आधारित नाटक विश्व के अनेक देशों में मंचित हो रहे हैं। हिंदी नाटकों को देखकर विश्व में हिंदी सीखी जा रही है।
कार्यक्रम में शोधार्थी श्यामलाल चौधरी रामसुखेन यादव, रणधीर अथिया ने कविता और गीतों के माध्यम से लोगों को मंत्रमुग्ध किया। विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला और पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा आयोजित इस महत्वपूर्ण उत्सव में कलागुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया, डॉ महिमा मरमट, डॉ प्रभु चौधरी डॉ हीना तिवारी आदि सहित अनेक साहित्यकार, सुधीजन, संकाय सदस्य, शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण ने सहभागिता की। प्रारम्भ में अतिथियों ने वाग्देवी का पूजन किया।
संचालन शोधार्थी श्यामलाल चौधरी ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर नेत्रा रावणकर ने किया।