Surat : आज दिनांक 3/1/2025 को टेक्सटाइल & गारमेंट कमेटी कैट ने वित मंत्री भारत सरकार निर्मला सीतारमण को पत्र लिख के निवेदन किया है की
टेक्सटाइल उद्योग में एमएसएमई आयकर की धारा 43B(H) में समीक्षा ,बदलाव और समानता का अधिनियम लागू कर कपड़ा उद्योग और छोटे छोटे व्यापारियों को राहत दिलाए ।
टेक्सटाइल & गारमेंट कमेटी के राष्ट्रीय चेयरमैन चंपालाल बोथरा ने बताया कि
टेक्सटाइल उद्योग एक कुशल -अकुशल रोज़गार प्रधान व्यापार होने के साथ साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के 5 F विजन का सपना है ।कपड़ा उद्योग में कॉटन / सिंथेटिक्स फाइबर to फैब्रिक to फैशन तक अलग अलग सेगमेंट शामिल होते है ।
यार्न से लेकर गारमेंट तक के सभी ऊधमी ,मैन्युफ़ैक्चरर होलसेलर , ट्रेडर्स , रिटेलर्स सभी 45 दिनों के भीतर ख़रीददारी के भुगतान नियम में बदलाव चाहते है ।
निम्न बदलाव कपड़ा उद्योग के हितार्थ है ।
1. एमएसएमई आयकर की धारा 43B(H) में पेमेंट की धारा 45 दिन से 90 दिन का बदलाव संशोधन किया जाए ।
2. इस अधिनियम का टेक्सटाइल उद्योग के सभी सेगमेंट पे पूरी चैन पे समानता से लागू हो ताकि रिटेल से लेके होलसेल तक और फिर एमएसएमई का पेमेंट समय पे रोटेशन हो सके ।
3. माइक्रो , लघु , मीडियम एमएसएमई और मैन्युफ़ेक्चरर होलसेलर , सेमी होलसेलर ,ट्रेडर्स , रिटेलर्स एक समान 90 दिन के अंदर पेमेंट नियम के अधिनियम में हो ।
4. अभी अधिनियम में मीडियम एमएसएमई पे ये क़ानून लागू नहीं होने से छोटे छोटे व्यापारी से कोई काम नहीं करना चाहता वे दिन ब दिन बंद होने के कगार पे आ रहे है ,इसलिए मीडियम एंटरप्राइज पे भी समान अधिनियम लागू हो ।
कैट की टेक्सटाइल & गारमेंट कमेटी ने कपड़ा उद्योग की समीक्षा कर बताया की इस उद्योग की सरंचना सर्विस सेक्टर (जॉब) की है तथा लंबी प्रोसेस की प्रक्रिया व अधिक लागत , अधिक समय लगने वाली प्रक्रिया के बाद कपड़ा फैब्रिक्स से परिधान तैयार होने तक पहुचता है ।
इस अधिनियम में एमएसएमई जो मशीनरी & प्लांट की परिभाषा में आते जैसे प्रोसेस डाइंग प्रिंटिंग , वैल्यू एडिसन , एंबोरोडरी, डिजिटल , मशीन वर्क आदि ये सभी अधिकतर सर्विस (job) सेक्टर का कार्य करते है ।
तथा जो कपड़ा मैन्युफ़ैक्चर होलसेलर , ट्रेडर्स जो लाखो की संख्या में है वो एमएसएमई की परिभाषा में नहीं आते क्योंकि उनके पास प्लांट और मशीनरी नहीं है परंतु ये सभी कच्चा रो मेटेरियल की ख़रीदी लागत लगा सभी एमएसएमई से जॉब सर्विस करा के कपड़े के रूप को बदल अलग अलग डाइंग प्रिंटिंग एंब्रोएडरी आदि करा साड़ी, सूट , कुर्ती ,गाउन ,लहंगा ,शर्टिंग होजियरी आदि फैब्रिक्स को तैयार कर रिटेलर्स तक बिकने के लिए देश विदेश में भेज सरकार को रेवन्यू दिलाते है और गारमेंट ,परिधान एक्सपोर्ट कर निर्यात को भी बढ़ाते है ।
इस अधिनियम से जो एमएसएमई है वो अधिकतर सर्विस सेक्टर (जॉब ) करते है उनको पेमेंट 45 दिन में देना आवश्यक हो जाता है जबकि कपड़ा अलग अलग प्रोसेस करने में ही 70 दिन लग जाते ।
जो मैन्युफ़ैक्चरर होलसेलर ट्रेडर्स है वो कपड़ा तैयार कराने की रो मैटेरियल से फिनिश तक सम्पूर्ण लागत लगा कपड़ा बनाते वह दोनों साइड से क़ानून की समानता नहीं होने से आर्थिक तकलीफ़ में आता है ।
क्योंकि ये जिसे माल बेचता वो एक भी एमएसएमई क़ानून के दायरे में नहीं होने से पेमेंट धारा 90-120 दिन का रोटेशन से आता है ।
यानी मैन्युफ़ैक्चरर ट्रेडर्स जो कपड़े की संपूर्ण लागत लगा कपड़ा बनाता है और सरकार को रेवन्यू दिलाने की कड़ी से जुड़ा है उसको उधारी , लागत , पेमेंट , उत्पादन , एक्सपोर्ट सभी कार्य को निभाना है । जो छोटे छोटे व्यापारी के लिए संभव नहीं है इसलिए उद्योग की धरातल समीक्षा कर सुझाए गए बदलाव को प्राथमिकता दे। ताकि छोटे छोटे व्यापारी एमएसएमई आयकर कानून की पेनल्टी के डर से 31 मार्च को पेमेंट क्लियर करने के दबाव में जनवरी से ही धंधा बंद करने को मजबूर हो जाते है ।अपनी 3 महीने की भरपूर सीजन में अपना व्यापार बंद करते है तथा इसका व्यापार बड़े मीडियम एमएसएमई के घरों में शिफ्ट होता है क्योंकि उन पे कानून लागू नहीं होता ।
इन सब बातो को ध्यान कर कपड़ा उद्योग के छोटे छोटे व्यापारियों को बचाने के लिए इसमें सामान कानून की समीक्षा कर समानता लाना ही उद्योग की भलाई है ।
कैट की टेक्सटाइल & गारमेंट कमेटी ने टेक्सटाइल उद्योग ने रोज़गार ,उत्पादन एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के साथ साथ छोटे छोटे व्यापारी को शीघ्र राहत दिलाने के लिए वित मंत्रालय से माँग की है