आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जयंती पर पुष्पांजलि और विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन हुआ विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में
भारतीय काव्य चिंतन और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी पर केंद्रित विमर्श में विद्वानों और साहित्यकारों ने विचार व्यक्त किए
उज्जैन :प्रख्यात समालोचक एवं विद्वान् आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के जयंती अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में पुष्पांजलि एवं विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न हुई। हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और ललित कला अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को भारतीय काव्य चिंतन और आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी पर केंद्रित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने की। मुख्य वक्ता कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, सारस्वत अतिथि कालिदास संस्कृत अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ संतोष पंड्या, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, रंग निर्देशक श्री शरद शर्मा, आचार्य त्रिपाठी जी की ज्येष्ठ सुपुत्री डॉक्टर विभा दुबे, इंदौर आदि ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी ने काव्य चिंतन के क्षेत्र में आत्म प्रत्यभिज्ञा की तलाश की। वे भारत के अपने समीक्षा शास्त्र के निर्माण और विकास की दिशा में आजीवन सक्रिय रहे। उन्होंने दशकों पहले पश्चिम के अनुकरण के बजाय भारतीय मानस की आत्मशक्ति के जागरण पर बल दिया। वे काव्य और आलोचना दोनों को सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं। उन्होंने साहित्य समीक्षा में सर्जनात्मक अनुभूति या मूल संवेदना के सौन्दर्य के प्रकाशन पर बल दिया।
प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के जीवन से जुड़े अनेक संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि आचार्य त्रिपाठी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने एक तपस्वी और मौन साधक के रूप में अपना संपूर्ण जीवन बिताया। उनका यश समस्त विश्व में व्याप्त है। वे प्राचीन और नवीन के समन्वयकर्ता थे।
सारस्वत अतिथि डॉ संतोष पंड्या ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की काव्य दृष्टि आत्मवादी थी। वह निरंतर चिंतन में मग्न रहते थे। वे आगम शास्त्र के वरेण्य विद्वान थे। संस्कृत की समृद्ध परंपरा से वे आजीवन जुड़े रहे।
प्रो गीता नायक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने काव्य के पुरातन और नए प्रतिमानों पर गहन मंथन किया। उन्होंने स्वभाव की उपलब्धि को मानव जीवन का परम उद्देश्य माना है। इसी दिशा में वे काव्य का महत्व मानते हैं। आचार्य त्रिपाठी आजीवन सरस्वती की साधना में लीन रहे। वे अत्यंत विनम्र और उदार थे।
आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की सुपुत्री डॉक्टर विभा दुबे इंदौर ने कहा कि उन्होंने अपने घर को आश्रम की तरह रखा, जहां देश भर के विद्वान और शोधकर्ता आते थे। उन्होंने कई पीढियों को साहित्य, कला और संस्कृति के संस्कार दिए।
प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी का योगदान बहुआयामी है। उन्होंने काव्यशास्त्र की परंपरा को न केवल आगे बढ़ाया, वरन उसमें नए विमर्श के माध्यम से समृद्ध भी किया।
4 जनवरी को संपन्न इस कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथि एवं उपस्थितजनों द्वारा आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस व्यक्तिचित्र का सृजन प्रख्यात कला मनीषी डॉक्टर रामचंद्र भावसार ने किया था। संगोष्ठी अवसर पर लोक एवं जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति पर अभिकेंद्रित ग्रंथ लोकावलोकन के दो खण्डों का प्रस्तुतीकरण विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मध्य किया गया। इस ग्रंथ में प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा का जनजातीय संस्कृति में प्रकृति पूजा एवं पर्यावरण बोध पर महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुआ है।
कार्यक्रम में डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, साहित्यकार श्री राजेश ठाकुर निर्झर, नृत्यांगना श्रीमती हीना वासेन, श्री पद्मनाभ त्रिपाठी, कलागुरु श्री लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, संकाय सदस्य, शोधकर्ता और विद्यार्थीगण उपस्थित थे।कार्यक्रम का संचालन प्रो जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रो गीता नायक ने किया