राकेश अचल
मैंने बचपन से ‘ कास्ट ‘ के बारे में सुना था। बड़ा हुआ तो ब्रॉडकास्ट,और फोरकास्ट के बारे में सुना अब ,बुढ़ापे में पॉडकास्ट के बारे में सुन रहा हूँ। जिंदगी के 45 साल पत्रकारिता करने के बाद मुझे ये पहली बार लगा कि मुझे पत्रकार होने के बजाय एक पॉडकास्टर या ब्रोकर होना चाहिए था ,क्योंकि एक पत्रकार से ज्यादा एक ब्रोकर और पॉडकास्टर ज्यादा सौभग्यशाली होता है। उसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से संवाद करने का अवसर जो मिलता है। मोदी जी का पॉडकास्ट केवल इस बात से चर्चा में है क्योंकि उन्होंने माना है कि -‘वे अवतार नहीं बल्कि एक मनुष्य हैं और मनुष्य से गलतियां होती हैं ‘
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से सीधा संवाद करने के लिए देश की प्रेस तरस गयी है। वे जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से उन्होंने प्रेस से सीधे संवाद की परम्परा ही तोड़ दी है ,हालाँकि ये एक सनातन परमपरा थी और इसे बचाया जाना चाहिए था। माननीय मोदी जी या तो अकेले में ‘ मन की बात ‘ करते हैं या फिर किसी अभिनेता को पत्रकार बनाकर उससे बात करते है। कभी -कभी उनका मन होता है तो वे बारी -बारी से नामचीन्ह चैनलों के नामचिन्ह ऐंकरों से भी खड़े-खड़े या किसी क्रूज पर सवार होकर ‘ मन की बात ‘ कर लेते हैं ,लेकिन किसी पत्रकार वार्ता में आने से हमेशा कन्नी काटते हैं। अब उन्होंने ‘ मन की बात ‘ करने के लिए एक ब्रोकर का सहारा लिया है। इससे हमारी अपनी बिरादरी में ‘ कहीं ख़ुशी है तो कहीं गम ‘ है।मोदी जी चाहते तो अपने मनुष्य होने की बात रात 8 बजे दूरदर्शन पर आकर भी कह सकते थे ,लेकिन अब दूरदर्शन भी उन्हीं की तरह अविश्वसनीय हो चुका है।
माननीय मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं ,वे किससे बात करें और किससे नहीं, ये उनकी मर्जी है । कोई उनके ऊपर दबाब नहीं डाल सकता। उन्हें ब्रोकर प्रिय हैं ,तो हैं। ब्रोकर ,पत्रकारों की तरह सवाल कर सकते हैं या नहीं इसका मुझे पता नहीं था ,लेकिन अब निखिल कामथ से ईर्ष्या करने से तो बात बनने वाली नहीं है ,इसलिए उन्हें शाबसी देना चाहिए कि उन्होंने उस प्रधानमंत्री से बातचीत की जो किसी और से बात नहीं करता। वैसे आपको पता होना चहिये कि प्रधानमंत्री को ब्रोकर आज से नहीं शुरू से पसंद हैं। और इस देश के आम नागरिक को ये अधिकार नहीं है कि वो अपने प्रधानमंत्री जी की पसंद या नापसंद पर सवाल खड़े करे।
निखिल कामथ बनना भी उसी तरह आसान नहीं है ,जिस तरह मोदी बनना । मोदी जी ने बचपन में चाय बेचीं और निखिल कामथ ने बचपन में मोबाईल बेचे। मोदी जी चाय बेचते-बेचते देश के प्रधान सेवक बन गए और निखिल जीरोथा के सह संस्थापक। निखिल 3 मिलियन की इस कम्पनी के मालिक है,ये बात और है की निखिल की कम्पनी पर फर्जी डीमेट कहते खोलने या बिना सीएफओ की नियुक्ति किये कम्पनी चलाने के आरोप में मोदी जी की ही सरकार ने लाखों का जुर्माना वसूल किया। । प्रधानमंत्री से बात करने के लिए इतनी हैसियत वाला कोई पत्रकार तो इस देश में है नहीं। पत्रकारों को यदि प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से बात करना है तो पहली शर्त तो ये है कि वो पहले ब्रोकर बने और दूसरी शर्त ये है कि कम से कम 3 मिलियन डालर का मालिक बने। हमारे यहाँ आम भाषा में ब्रोकर को ‘ दलाल ‘ कहा जाता है। दलाल शब्द असंसदीय नहीं है ,लेकिन देश-काल और प्रतिस्थितियों में इस दलाल शब्द के मायने बदल जाते हैं।
कलिकाल कहें या मोदी काल में दलालों की चांदी है ,फिर चाहे दलाल वाल स्ट्रीट के हों ,सब्जी मंडी के हो ,अनाज मंडी के हों या सियासत के हों। जीबी रोड के दलालों की बात मै कर नहीं रहा। निखिल कामथ वाल स्ट्रीट के दलाल है या दलाल स्ट्रीट के दलाल इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,क्योंकि वे एक कामयाब दलाल हैं और उनकी कामयाबी ही उन्हें प्रधानमंत्री जी तक ले गयी है। निखिल के साथ संवाद करने में मोदी जी शायद इसलिए सहज दिखे या सहज रहे क्योंकि वे दलालों की भाषा और व्याकरण को बेहतर समझते हैं। वे ख़ास किस्म के अहमदाबादी हैं ,जो सिर्फ लेता है देता नहीं। प्रधानमंत्री जी ने खुद ये बात निखिल से संवाद में कही है। हमारे यहां कहा जाता है न -‘ खग जाने खग की भाषा ‘यही बात निखिल और मोदी जी पर लागू होती है।
निखिल को शाबासी दूंगा क्योंकि उनका मोदी जी के साथ पॉडकास्ट बहुत मजेदार था। वे मोदी जी से बात न करते तो देश और दुनिया को कैसे पता चलता कि – मोटी चमड़ी बनाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ती । मोदी जी से निखिल ने दीन-दुनिया की बातें कीं लेकिन गरीब ये नहीं पूछ पाया कि मोदी जी मणिपुर जाने से क्यों कन्नी काटते हैं ? निखिल की हिम्मत नहीं थी कि वो मोदी जी से पूछ ले की वे पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में कब शामिल हो रहे हैं या उनका इरादा स्वर्गीय मोरारजी देसाई की तरह 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने रहने का तो नहीं है ? हकीकत ये है कि मोदी जी से ऐसे जलते सवाल कोई दिलजला पत्रकार ही पूछ सकता है ,कोई दलाल नहीं।
मेरी श्रीमती जी मेरी तरह माननीय मोदी जी की मुरीद है। उन्होंने भी निखिल और मोदी जी का मधुर संवाद सुना और बोलीं की -‘ ये पॉडकास्ट है या फ्रोड्कास्ट ‘? मै अपनी पत्नी के सवालों से उसी तरह कन्नी काट गया जैसे मोदी जी देश की प्रेस से कन्नी काटते हैं। अब आप ही बताइये की मै किसी पॉडकास्ट को फ्रोड्कास्ट कैसे कह सकता हूँ ?मोदी जी का ये पॉडकास्ट भी सोचना मंत्रालय में फिल्म्स डिवीजन के संग्रहालय का हिस्सा बनेगा और आने वाली पीढ़ी जब इसे देखेगी और सुनेगी तब उसे ही तय करना होगा कि एक दलाल को पत्रकार की भूमिका निभाना चाहिए या एक पत्रकार को दलाल बनकर काम करना चाहिए। पोडकास्ट के लिए महंगा स्टूडियो बनाना ,यंत्र खरीदना कम से कम मेरे जैसे पत्रकारों के बूते की बात नहीं है । यहां तो अपने यूट्यब चैनल के लिए एक अदद माइक जुगाड़ने में ही साल भर लग गया। वो भी बेटे की कृपा हो गयी अन्यथा अच्छे माइक का सपना शायद सपना ही रह जाता।
बहरहाल आपको भी ये पॉडकास्ट सुनना चाहिए/ देश के 95 करोड़ लोग पॉडकास्ट सुनते हैं। अरबों का कारोबार है दुनिया में पोडकास्टरों का। आज जब प्रिंट और दृश्य-श्रव्य मीडिया अविश्वसनीय हो गया है। लोग अख़बारों को हाथ लगाने से बचते है। टीवी चैनलों पर दो पल नहीं ठहरते तब दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री जी द्वारा पॉडकास्टर की शरण में जाना उनकी मजबूरी को जाहिर करता है। लेकिन उन्हें शायद पता नहीं है कि आज भी इस देश में 85 करोड़ लोग पॉडकास्ट नहीं सुन पाते क्योंकि उनके पास दो जून की रोटी नहीं है ,मोबाईल फोन तो दूर की बात है।