मध्यप्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजयसिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह पर एफआईआर दर्ज कराने के मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। दिग्विजय सिंह के राघौगढ़ किले में मारपीट की वारदात हुई थी जिसमें जयवर्धनसिंह पर केस दर्ज कराने की मांग की जा रही थी। पुलिस द्वारा दिग्विजयसिंह के विधायक बेटे का एफआईआर में नाम दर्ज नहीं किए जाने पर जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी। हाईकोर्ट ने कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह को राहत दी है। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने उन्हें मारपीट के इस मामले में आरोप बनाने से इंकार करते हुए याचिका निरस्त कर दी है।
गुना निवासी विशंभर लाल अरोड़ा ने हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उनके साथ राघौगढ किले में मारपीट की गई थी। उसने पुलिस को लिखित शिकायत की जिसमें जयवर्धन सिंह का नाम भी था। इसके बावजूद पुलिस ने आरोपियों में उनका नाम शामिल नहीं किया। याचिका में विशंभर लाल ने जयवर्धन सिंह को इस आपराधिक प्रकरण में आरोपी बनाने की मांग की।
हाईकोर्ट ने जयवर्धन सिंह को आरोपी बनाने की मांग खारिज करते हुए याचिका निरस्त कर दी। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि याचिकाकर्ता के बयान से यह तथ्य स्पष्ट नहीं होता है। प्रथम चरण में जयवर्धन सिंह के घटनास्थल पर मौजूद नहीं होने की बात भी खुद ही स्वीकारी थी जिसका बाद में भी खंडन नहीं किया। इन आधारों पर हाईकोर्ट ने याचिका निरस्त कर दी।
ये है मामला
याचिकाकर्ता विशंभर लाल अरोड़ा के अनुसार 20 सितम्बर, 2016 को उसके साथ मारपीट की गई। उसने सुबह 11.30 बजे वारदात की सूचना गुना जिला के विजयपुर थाना पुलिस को दे दी थी। संज्ञेय अपराध होने के बाद भी पुलिस एफआईआर दर्ज करने में टालमटोली करती रही और शाम करीब 5.30 बजे केस दर्ज किया। लिखित शिकायत में जयवर्धन सिंह के नाम का उल्लेख करने के बावजूद तत्कालीन एसएचओ ने आरोपियों में उनका नाम शामिल नहीं किया। पुलिस के इस रवैये के विरुद्ध हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। नए सिरे से आवेदन प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता मिलने पर याचिका वापस ले ली गई थी। बाद में सेशन कोर्ट ने आवेदन निरस्त कर दिया तो हाईकोर्ट में फिर से याचिका दायर की गई।