सुनील त्रिपाठी/ रविंद्र आर्य
प्रखर न्यूज़व्यूज एक्सप्रेस
कट्टरपंथी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम ने इस्कॉन को आतंकवादी संगठन बता, देश में इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
कोलकाता इस्कॉन के वाइस प्रेजिडेंट और हिंदू आध्यात्मिक गुरु रामा रमन दर्शन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भारत सरकार से अपील की है कि वह इस्कॉन के धर्मगुरुओं और वहां के हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। बांग्लादेश में इस्कॉन के सचिव चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी पर राष्ट्रद्रोह और झंडे के अपमान का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया है। उन पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक रैली में बांग्लादेश के झंडे के ऊपर भगवा पताका फहराया, जो बांग्लादेश सरकार और कट्टरपंथियों ने गंभीर अपराध माना।
चिन्मय दास ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह आरोप हिंदुओं को एकजुट होने से रोकने और उनकी आवाज दबाने के लिए लगाए गए हैं। उन्होंने हिंदू समाज को संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की अपील की थी। वहीं, इस घटना पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार एजेंसियों का ध्यान भी गया है, लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार और हिंसा की घटनाएं लगातार चिंता का विषय बनी हुई हैं।
भारत सरकार पर यह भी मांग बढ़ रही है कि वह बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों की जांच करे और ऐसे मामलों पर सख्त रुख अपनाए। हिंदू समुदाय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने बांग्लादेश की कट्टरपंथी मानसिकता और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम ने इस्कॉन को देश में प्रतिबंधित करने की मांग की है, साथ ही इस्कॉन के धर्मगुरुओं और हिंदू समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। आरोप है कि इन संगठनों के प्रभाव के चलते हिंदुओं के पूजा स्थलों और व्यवसायों पर हमले बढ़ गए हैं। हाल ही में कई मंदिरों को तोड़ा गया और हिंदुओं पर हमले हुए, जिसमें उनकी हत्या और संपत्ति की लूटपाट शामिल है।
हिफाजत-ए-इस्लाम और अन्य कट्टरपंथी संगठनों का कहना है कि इस्कॉन जैसी संस्थाएं धार्मिक अशांति फैला रही हैं, जबकि इस्कॉन के नेता और धर्मगुरु इसे हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के खिलाफ साजिश मानते हैं। उनका दावा है कि ये संगठित हमले हिंदुओं की आबादी को और कम करने के प्रयास हैं।
इस स्थिति में बांग्लादेश सरकार और पुलिस की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संगठनों ने हिंदुओं पर अत्याचार के बढ़ते मामलों की जांच की मांग की है। धार्मिक असहिष्णुता के इस माहौल में बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकार और सुरक्षा की स्थिति गंभीर बनी हुई है।
बांग्लादेश में इस्कॉन के धर्मगुरु चिन्मय दास ब्रह्मचारी पर लगाए गए आरोप और उनकी गिरफ्तारी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। कट्टरपंथी संगठनों ने उन्हें राष्ट्रद्रोह और बांग्लादेश के झंडे के अपमान के आरोप में फंसाया है। यह दावा किया जा रहा है कि उन्होंने हिंदुओं को संगठित करने और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई, जिसे बांग्लादेश की कट्टरपंथी जमातों और राजनीतिक वर्ग ने भड़काऊ गतिविधि करार दिया। इस मामले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका का भी जिक्र किया जा रहा है, जो हिंदू संगठनों को निशाना बनाने में सक्रिय है।
शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और अत्याचार बढ़े हैं। देश में कट्टरपंथी गुट, जैसे हिफाजत-ए-इस्लाम, हिंदू नेताओं और संगठनों को आतंकवादी करार देकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। चिन्मय दास ब्रह्मचारी ने हिंदुओं को एकजुट होकर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए प्रेरित किया था, जो कट्टरपंथियों को नागवार गुजरा।
बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति लगातार खराब हो रही है। मंदिरों पर हमले, धार्मिक स्थलों की तोड़फोड़, और हिंदुओं की हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। यह घटनाएं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और भारत सरकार के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। यह मांग उठ रही है कि भारत और वैश्विक मंच इन घटनाओं पर सख्त कदम उठाएं।
बांग्लादेश में इस्कॉन को प्रतिबंधित करने की मांग मुख्य रूप से कट्टर मुस्लिम संगठनों जैसे हिफाजत-ए-इस्लाम और अन्य कट्टरपंथी गुटों से आ रही है। ये समूह हिंदू धर्म और इस्कॉन के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि ये संस्थाएं “अशांति फैलाने” और “बांग्लादेश की पहचान को चुनौती देने” का कार्य कर रही हैं।
हाल के समय में, हिंदुओं और इस्कॉन से जुड़े धर्मगुरुओं पर गंभीर आरोप लगाकर उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। इस्कॉन के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण ब्रह्मचारी और अन्य हिंदू कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें उन्हें “हिंदुओं को भड़काने” और बांग्लादेश के झंडे का अपमान करने का आरोप लगाया गया है। यह स्पष्ट रूप से धार्मिक उत्पीड़न का हिस्सा है, जो हिंदू समुदाय के खिलाफ लंबे समय से जारी है।
इन कट्टरपंथी गुटों की हिंदू समुदाय के प्रति राय अत्यंत नकारात्मक है। वे हिंदुओं को “अल्पसंख्यक समस्या” के रूप में देखते हैं और उन्हें हाशिये पर धकेलने का प्रयास करते हैं। 1951 में बांग्लादेश (तब का पूर्वी पाकिस्तान) में हिंदू आबादी 22% थी, जो अब घटकर 8% से भी कम रह गई है। यह धार्मिक उत्पीड़न, हिंसा और भूमि कब्जे का परिणाम है। हाल ही में राजनीतिक अस्थिरता के दौरान भी हिंदुओं के घर जलाए गए, महिलाओं का अपहरण किया गया, और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया।
इस स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने और हिंदू समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए इस्कॉन और अन्य संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है। यह घटनाएं अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में गंभीर चिंताओं को उजागर करती हैं।
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय और इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस) के खिलाफ बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा को रेखांकित करती है। बांग्लादेश में हिंदू समुदाय लंबे समय से अल्पसंख्यक समूह के रूप में धार्मिक भेदभाव और हमलों का सामना कर रहा है।
इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
हिफाजत-ए-इस्लाम की भूमिका:
यह एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसकी स्थापना 2010 में शाह अहमद शफी ने की थी। यह संगठन इस्लामी कानून लागू करने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए जाना जाता है। यह विशेष रूप से हिंदुओं और इस्कॉन जैसे संगठनों के खिलाफ अपनी नफरत भरी विचारधारा फैलाने में सक्रिय है।
चटगांव में हालिया हमले:
चटगांव और अन्य क्षेत्रों में हिंदुओं पर हमले, मंदिरों को तोड़फोड़, और धार्मिक नफरत फैलाने की घटनाएं चिंताजनक हैं। ये घटनाएं धार्मिक असहिष्णुता की एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करती हैं।
इस्लामी कट्टरपंथ और अल्पसंख्यक:
बांग्लादेश का संविधान धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी देता है, लेकिन व्यवहार में धार्मिक कट्टरपंथ के कारण ये अधिकार कमजोर हो जाते हैं।
समाधान और प्रतिक्रिया:
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप:इस तरह की घटनाओं पर भारत और अन्य देशों को बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
स्थानीय सरकार की जिम्मेदारी:बांग्लादेश सरकार को कट्टरपंथी संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
मीडिया और जागरूकता: ऐसी घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लाना आवश्यक है ताकि इस मुद्दे पर व्यापक जागरूकता बढ़ाई जा सके।