Breaking
16 Oct 2024, Wed

बीसीसीआई की तंगदिली का मतलब

राकेश अचल

अमीरों के खेल क्रिकेट पर नियनत्रण करने वाली संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर भी अब सियासी यानि भगवा रंग साफ़ दिखाई देने लगा है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बोर्ड की कमान किसके हाथ में है। बोर्ड किसी के भी हाथ में हो लेकिन बोर्ड पर हाथ उसी बिरादरी का है जो देश का भगवाकरण चाहती है। ताजा उदाहरण ग्वालियर में बांग्लादेश की क्रिकेट टीम से भेदभाव का है।

Advertisements

ग्वालियर में 6 अक्टूबर को होने वाले टी-20 मैच के लिए बांग्लादेश की टीम ग्वालियर आयी हुई है। यहां के भगवा ब्रांड दल हिन्दू सभा ने इस मैच का विरोध हिन्दू मुसलमान का चश्मा पहनकर किया है । हिन्दू महासभा अब कागजी शेर भर है ,उसने 6 अक्टूबर को इस मैच के विरोध में ग्वालियर बंद का आव्हान भी किया है ,लेकिन ये खबर नहीं है, क्योंकि जिला प्रशासन और पुलिस ने शहर में पहले से निषेधाज्ञा लगाकर हिन्दू महासभा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। हिन्दू महासभा के कागजी शेरों से निबटने के लिए पुलिस के बारह सौ लठैत कमर कसकर तैयार खड़े हुए हैं।

इस मैच को लेकर खबर तो ये है कि अतिथि देश बांग्ला देश की क्रिकेट टीम के खिलाडियों को न तो नगर भ्रमण करने दिया गया,न मूवी देखने जाने दिया गया और न ही शुक्रवार को स्थानीय मोती मस्जिद में जुमे की नमाज पढ़ने की इजाजत दी गयी। कहा गया कि बीसीसीआई ने ये सब किया । अतिथि देश के खिलाडियों को मन मारकर होटल में ही नमाज अता करना पड़ी । लेकिन बीसीसीआई आई ने जिस तरह से बांग्लादेश के खिलाडियों को उनकी मनोकामना पूरी करने की इजाजत नहीं दी उससे जाहिर है कि बोर्ड का भी भगवाकरण हो गया है। मुमकिन है कि बोर्ड ने खिलाडियों की सुरक्षा को मिली धमकियों को देखते हुए बांग्लादेश के खिलाडियों को मस्जिद जाने से रोका हो लेकिन इस कार्रवाई से भारत में खिलाडियों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सवाल ये है कि क्या स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने बांग्लादेश के खिलाडियों को होटल से मस्जिद तक जाने में सुरक्षा देने से इंकार कर दिया था या बोर्ड ने खुद ये फैसला किया।

ग्वालियर में कोई विदेशी टीम पहली बार नहीं आयी है । स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के जमाने से विदेशी टीमों का ग्वालियर आना-जाना बना हुआ है। ग्वालियर में अतिथि देश के क्रिकेटरों को अतीत में न सिर्फ ग्वालियर घुमाया गया बल्कि उन्हें स्थानीय बच्चों के साथ खेलने ,स्वयंसेवी संस्थाओं में जाने की इजाजत भी दी गयी। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अतिथि टीम के खिलाडियों को उनकी आस्थाओं के ठिकानों पार जाने से रोका गया है । मुझे पता है कि अपने इस फैसले के पक्ष में बीसीसीआई एक नहीं, दस तर्क दे देगी । खेद जताने या माफी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता ,लेकिन ग्वालियर के एक सामान्य नागरिक के रूप में मै ग्लानि महसूस कर रहा हूँ । मुझे बीसीसीआई का फैसला ग्वालियर की समरसता की परम्पराओं के खिलाफ लग रहा है । इसलिए कोई खेद जताये न जताये, माफी मांगे या न मांगे लेकिन मै ऐसा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहता।

लगभग 98 साल पुराने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चेयरमेन रोजर बिन्नी और उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला तथा सचिव जय शाह रहे है। बोर्ड का कारोबार भी करोड़ों में है । पुराने आंकड़ों के हिसाब से 166 करोड़ से ज्यादा का कारोबार तो बोर्ड एक दशक पहले कर चुका है। बीसीसीआई भारत के सबसे अमीर खेल संस्था है और दुनिया में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। बीसीसीआई के संविधान, सभी पदों के लिए अपनी वार्षिक आम बैठक में वार्षिक चुनाव के लिए प्रदान करता है लगातार दो वर्षों से परे एक निवर्तमान राष्ट्रपति के फिर से चुनाव पर एक बार, “प्रदान की है कि सामान्य निकाय अपने विवेक में फिर से चुनाव कर सकते हैं।

आपको पता ही है कि बीसीसीआई शुरू से राजनीति का चरागाह रहा है। आजकल ये जिन शाह साहब के हाथ में है उनकी एकमात्र विशेषता ये है कि वे देश के केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह के पुत्र है। अन्यथा जय शाह का क्रिकेट से दूर-दूर का कोई रिश्ता हो ऐसा मुझे तो कम से कम पता नहीं है । जय भाई साहब व्यवसायी हैं और बाद में और क्रिकेट प्रशासक बना दिए गए हैं। जय शाह ने अहमदाबाद के निरमा विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। स्नातक करने के बाद, वह 2003 में पीवीसी पाइप के एक पारिवारिक उद्यम में शामिल हो गए। इसके बाद, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, जय शाह एक स्टॉकब्रोकर बन गए और 2004 में टेंपल एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक ट्रेडिंग फर्म की स्थापना की। जय शाह साहब एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष भी हैं।

जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि क्रिकेट आम आदमी का नहीं बल्कि शाही खेल है। इसी के चलते जय शाह ग्वालियर के शाही सिंधिया परिवार पर मेहरबान हुए। उन्होंने ग्वालियर में स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के नाम पर नया स्टेडियम बनाने में बोर्ड की और से भरपूर मदद की क्योंकि ये क्रिकेट है सिंधिया परिवार के भावी उत्तराधिकारी महाआर्यमन सिंधिया को सार्वजनिक जीवन में उतरने के लिए लांचिंग पेड है। जय शाह कि पिता सिंधिया परिवार कि जयविलास महल में पूर्व में मिले आतिथ्य से गदगद हैं ही । बहरहाल मै वापस बांग्लादेश के खिलाडियों के साथ धार्मिक आधार पर बोर्ड द्वारा किये गए व्यवहार की निंदा करते हुए उम्मीद करता हूँ कि देश को बदनामी से बचने के लिए बीसीसीआई भविष्य में धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर काम करेगा।

By archana

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *